۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
रहबर

हौज़ा/हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) के शहादत के मौके पर गुरुवार की रात तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में मजलिस हुई।जिसमें इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई भी शामिल हुए। जबकि कोविड प्रोटोकोल की वजह से श्रद्धालुओं की आम शिरकत नहीं हुई।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) के शहादत के मौके पर गुरुवार की रात तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में मजलिस हुई।जिसमें इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई भी शामिल हुए। जबकि कोविड प्रोटोकोल की वजह से श्रद्धालुओं की आम शिरकत नहीं हुई।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) के शहादत दिवस की मजलिस मशहूर वक्ता जनाब मसऊद आली ने पढ़ी। उस्ताद मसऊद आली ने अपनी तक़रीर में इस बात पर ज़ोर दिया कि जो लोग सत्य के मोर्चे से दिली लगाव रखते हैं और अल्लाह के इरादे के मुताबिक़ अमल करने की कोशिश में रहते हैं वे इतिहास में नबियों और पैग़म्बरों की इबादतों के सवाब में शामिल हैं।


उस्ताद मसऊद आली ने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने किरदार और अपने बयान से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) को हक़ के पैमाने और कसौटी की हैसियत से पहचनवाया। पैग़म्बरे इस्लाम की मृत्यु के बाद हज़रत ज़हरा (स.अ.) का सबसे बड़ा मिशन हक़ और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की विलायत की मरकज़ी हैसियत का समर्थन करना था।
जनाब मसऊद आली ने मजलिस के आख़िर में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) की शहादत के आख़िरी लम्हों के हालात बयान किए।
जनाब मसऊद आली की मजलिस के बाद मशहूर ‘रौज़ाख़्वान’ (नौहा व मरसिया ख़्वान) महदी समावाती ने दुआ-ए-तवस्सुल और मसायब पढ़े।

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